‘प्रेम’ कुछ भाव : कुछ विचार : कुछ मोती : कुछ सीप :
friends ये मेरी पहली पोस्ट है जिसमे मैंने मूलतः अपने दिल-औ –दिमाग,अतीत,भावनाओं,मन के भावों की अभिव्यक्ति,और कलम का सहारा लिया है| शीर्षक है ‘‘प्रेम’’|
प्रेमचंद्र आप सभी
के ‘प्रेम’ और आशिर्बाद की आकांछा करता है|
आप जानते ही हैं की आज तक जितना अधिक ‘प्रेम’ पर लिखा गया
हैं,उतना किसी और पर नहीं| इतना होने पर भी ‘प्रेम’ को अभी तक कोई सर्वसम्मत परिभाषा नही दे सका|किसी कवी ने तो हार कर कुछ
यूँ कह डाला :
“उल्टा पलटी करहुं लिखित जग की सब भाषा |
मिलहिं न पै कहुं एक ‘‘प्रेम’’ पूरी परिभाषा ||
‘प्रेम’ क्या है/what is love ;
सही कहा है विद्वानों ने की
‘प्रेम’ को शब्दों के
माध्यम से व्यक्त नही किया जा सकता|इसे सटीकता से प्रदर्शित भी नही किया जा सकता| ‘प्रेम’ केवल महसूश किया
जा सकता है| एक पूर्ण कांच की तरह होता है ‘प्रेम’ जो कभी दिखाया नही जा सकता| ‘प्रेम’ को लेकर कुछ भाव देखिये:
- प्यार की परिभाषा को हमने ढूंडा किताबों में
,मंदिरों में ,मस्जिदों में,....फिर देखा उन आँखों में ,जो किसी दुसरे के लिए
रोशन हो उठती है.....सुना उन धडकनों को जो किसी और के लिए धडकती है....महसूस
किया उस मीठे एहशास को ,जिस पर रिश्तों की बुनियाद टिकी होती है....हमने जाना
‘प्रेम’ क्या है... हमने जाना ‘प्रेम’ क्या
है...|................unknown
- सपनों से भी सुन्दर और अदभुत जो बयां नही हो
सकता|..........unknown
- “‘प्रेम’” ‘प्रेम’ है! “‘प्रेम’” को
कोई नाम न दो | “‘प्रेम’”-ही-’प्रेम’ है|
“‘प्रेम’” सर्व विषयों में
अपने आप में एक उलझा हुआ विषय है| जिसे किसी और के साथ मापा नही जा सकता| एक नवयुवक
का उसकी प्रेमिका को विदा देते हुए ‘प्रेम’:
“हँस के तो विदा दे
देंगे,लेकिन बाद में जो रोना आये और जिंदगी भारी बन जाए जीने के लिए, तब क्या
करेंगे?”
‘स्त्री’ और ‘‘प्रेम’’| ‘woman’ and ‘love’:
“समुद्र
सा ‘प्रेम’ मेरा....गहरे
से भी गहरा....
अनंत सी
तुम....दूर जैसे आकाश.....
कहते हैं किसी लड़के और लड़की की ज़िन्दगी का सबसे खुशनुमा पल वह होता है,जब
वो एक-दुसरे को ‘प्रेम’ में पड़कर,पहली बार स्पर्श करें| मैं
सच्चे ‘प्रेम’ को वर्णित कर रहा हूँ| एक पुरुष का
कहना है-:
“मेरी ज़िन्दगी का वह सबसे जादा खुशियों से भरा पल था...वह भीगी
हुई खामोश रात थी...चारो ओर चांदनी का बिखरना...उसका चुपके से आना , और आकर मेरे
पास बैठ जाना,..दोनों खामोश...फिर उनका मेरा हाथ अपने हाथों में लेकर,अपने होंठो
से लगाना....खामोश रजनी में खामोश लव फिर उनका मेरा हाथ पकड़ कर छत पर ले
जाना...वहां पूनम सी चांदनी का बरसना और उस बरसात में मेरा उनके चेहरे को अपमी
दोनों हथेलियों में थामे हुए मुस्कुराते हुए देखना....”
“किसी से जुदा
होना इतना आसान होता तो,रूह को जिश्म से लेने फ़रिश्ते नहीं आते|...
कुछ ऐसा ही होता है ‘प्रेम’! बनाने वाले
ने न जाने कितनी शिद्ददों से बनाया होगा ‘प्रेम’ की
भावनाओं को जो खुद को भी भूल जाता है ‘प्रेम’ करने
वाला| उनके लिए हर लम्हा,हर पल बस प्रयास की ही याद आती है,उनके सिवाय कुछ भी नही
भाता,ना जाने कैसी प्यास होती है ‘प्रेम’ की जो एक
बार लग जाए तो सदियों तक बुझा नहीं करती!
“चलो आज सारा जहां बाँट लेते हैं......आप
सिर्फ मेरे....बाकी सब तुम्हारा...
इतिहास साक्षी
है,एक स्त्री और पुरुष की ‘प्रेम’ कहानियाँ
सदियों से चली आ रही हैं,ये एक तरफा भी हो सकता है और दोनों तरफ भी|
यूनान की एक
सुन्दर कहानी है की अत्यंत प्राचीन काल में मनुष्य के २ हाथ और २ पैर नहीं होते
थे,बरन ४ हाथ और ४ पैर हुआ करते थे| उस समय उसके पास प्रवल शक्ति थी,और प्रवल
शक्ति के कारण उसने देवताओं पर चडाई करने की सोची| और जब वह सैन्य समूह सहित
स्वर्ग के फाटक पर पहुँचा तो देवता लोग घबराये और अंत में अपने राजा ‘जीयस’ से
प्रार्थना की आप इस संकट को टाले|इस पर राजा ने हर एक व्यक्ति के २-२ हाथ और २-२
पैर काट कर दो टुकड़े कर जमीन पर फेंक दिए,अब उनकी शक्ति आधी रह गयी थी| इए दोनों
टुकड़े नर व मादा के रूप में पृथ्वी पर हुए और तब से सदा अपने दूसरे भाग से मिलने
के लिए कोशिश किया करते हैं| पुरुष हमेशा से ही स्त्री के ‘प्रेम’ के
लिए आकुल रहता आया है|
और
शायद यही सच है,महशूश किया है इसे लोगों ने,२ जिश्म एक ना होते हुए भी एक हो जाते
हैं| मैं तो इसे वैज्ञानिक लब्जों में कुछ इस तरह वयां करूंगा: “ जब
से बिग बेंग हुआ क्वार्क और इलेक्ट्रान बने,न्युट्रान और प्रोटोन बने,ब्रह्माण्ड
बना, ग्लेक्सियाँ बनी, और फिर न्यूटन आये और उन्होंने एक नियम दिया “law
of attraction” जिसके अनुसार इस ब्रह्माण्ड में हर एक छोटी बस्तु अपने से बढ़ी
बस्तु की और आकर्षित होती है| उनका ये नियम क्वार्क से लेकर गलेक्सी तक सर्व
था,,ठीक ऐसे ही जब हमारा ‘प्रेम’ अपने प्रेमी
के लिए इतना प्रगाढ़ हो जाता है की वह हमारी हर भावना पर भारी पढ़े,तो आत्मा
अपनी,अपनी नही रहती! वो परायी हो जाती है, कोई खींच लेता है उसे अपनी
ओर...........................
या यूं कहे कि ‘प्रेम’ हमारे
जिश्म-ओ-आत्मा पर हावी हो जाता है.....
नारी ‘प्रेम’ सम्बन्ध में
हमारे दार्शनिक क्या कहते हैं;
·
स्त्री ‘प्रेम’ के
लिए हुई है,और उसे ‘प्रेम’ की खोज करने से रोका नहीं जा सकता|
·
स्त्री केवल एक बार ‘प्रेम’ करती
है,परन्तु यदि वह उस ‘प्रेम’ में असफल रही तो उसका परिणाम बड़ा भयंकर
होता है|
·
स्त्री का ‘प्रेम’ पानी
की लहर के समान और उसकी वफ़ा रेत की लकीर के समान होती है|
·
स्त्री किसी पुरुष से उस समय तक ‘प्रेम’ नहीं
कर सकती,जब तक वह उसे अपने से किसी द्रष्टि से बढ़िया नहीं पाती|
·
स्त्री अपनी प्रत्येक बस्तु भूल जाती
है,परुन्तु पुरुष से प्यार करने के बाद उसकी याद को नहीं भूलती|
‘प्रेम’ का आदान-प्रदान|sharing of love:
हकीकत तो यही है कि ‘प्रेम’ आधे-आधे का
सौदा नहीं है कि 50% प्रेमी दे और 50% प्रेमिका दे,इसमे तो दोनों एक दूसरे को १००%
देकर मूलधन को दुगना करते है| यह घाटे का नहीं नफे का सौदा है,पर आपको संतुलन
बनाये रखकर लेना और देना,दोनों आने चाहिए| ‘प्रेम’ एक
ऐसा अमृत है और नशा है की मनुष्य सबकुछ देकर ही सबकुछ पाता है|.......’प्रेम’
निवेदन एक तरफा नहीं होना चाहिए| यह एकांकी प्रक्रिया होकर स्थायी नहीं रह सकता| “मुझे
कोई प्यार करे,मैं किसी को अच्छा लगूं,मैं किसी का हो जाऊं और किसी को अपना बना
लूं”
मानव की ये इच्छाएं बहुत सनातन(पुरानी) हैं| एक कवी का कथन है कि-“जीवन
में कभी भी अपना कोई ‘प्रेम’-साथी न होने की अपेक्षा व्यक्ति ‘प्रेम’ करके
‘प्रेम’ की
बाजी हार जाए” यह लाख दर्जे अच्छा है|......
‘प्रेम’ और वासना | love and lust:
इस हैडलाइन ने तो उलझन में डाल
दिया? क्या वासना(सेक्सुअल फीलिंग्स)रहित ‘प्रेम’ हो सकता है?
ये ठीक वही जान सकता है जिसने खुद कभी ‘प्रेम’ किया हो?हो
सकता है?....pc
आजकल के ज़माने
में युवक-युवतियों के दिलों में ‘प्रेम’ करने का नशा
छाया रहता है,इसे यकीनन ‘प्रेम’ नहीं कह
सकते| “love and lust” में “‘प्रेम’ और
वासना’ में आकाश-पाताल का अंतर होता है| ‘प्रेम’ कल्याणकारी
है और वह मनुष्य के सद्गुणों का आश्रय लेकर उभरता है,जबकि वासना मानव को पतन की ओर
ले जाती है|......बाबा कहा करते थे -"जिस तरह धूल काँच को और धुँआ आग को ढक लेता है.....ठीक इसी तरह काम(sex) बुद्धि को ढक लेता है".....
‘प्रेम’ करने से क्या-क्या होता है | what happens to love:
dr. johns halpkins कहते है;
- ‘प्रेम’
करने से आपका जुकाम बढ़ जाता है..
- ‘प्रेम’
से पाचन शक्ति पर इतना बुरा प्रभाव पढ़ सकता है की रही-सही भूख भी गायब हो
जाए..
- ‘प्रेम’
करने से आप २४ hr सिर दर्द से पीड़ित रह सकते हैं...
और डॉक्टर साहब कहते हैं;
- ‘प्रेम’
हरगिज अँधा नहीं होता...
- ‘प्रेम’
मोहक और आकर्षक नहीं होता...
- प्रेमी
को आदर्शवादी नहीं बनाता....
- ‘प्रेम’
अमर नहीं हो सकता...
- विवाह
के बाद ‘प्रेम’ सुख ही सुख प्रदान नहीं कर
सकता...
- ‘प्रेम’
आनंद नहीं देता...
‘प्रेम’ सबने किया | love is all:
ये धरती ‘प्रेम’ भूमि
है| यहाँ पर सभी ने थोडा बहुत ‘प्रेम’ किसी न किसी
से अबस्य किया है| सायद मेरा ये कथन पूर्णतः सत्य है,विश्व के प्रायः सभी
महापुरुषों ने अपनी पत्नियों या प्रेमिकाओं को आदर्श ‘प्रेम’ पत्र
लिखे हैं| संसार के सुप्रसिद्ध व्यक्तियों के ‘प्रेम’ पत्र
विश्व साहित्य की अक्षय निधि बन गए हैं| इनके ‘प्रेम’ पत्रों
का अध्ययन न केवल मनोरंजक होगा बल्कि ज्ञानबर्धक भी;
- “.........मैं
ज़िन्दगी भर के लिए तुमसे और विज्ञान से बंध गया हूँ.......|”.scientist
लुइ पाश्चर का पत्र मेरी लारेंट के नाम
- “.......मैं
हज़ार तरह की दिली बातें तुमसे कहना चाहता हूँ,लेकिन उसके लिए उपयुक्त भाषा पर
अधिकार मैं नहीं रखता.........|” वैज्ञानिक फैराडे का पत्र
सैराह के नाम
- “.......मैंने
तुम्हारे बालों की लटों को चुम्बनों से भर दिया है| यदि एक बार भी अपना सिर
तुम्हारे घुटनों पर रखकर सो सकता......|” .............क्रांतिकारी
मैजिनी का पत्र गिंदिता सिडोली के नाम
- “...........यदि
तुम पहले मर गईं,तो उसके बाद भी मैं तुम्हें प्यार करता रहूँगा,और यदि मैं
पहले मर गया? तो मरने पर भी मैं तुम्हे प्यार करना नहीं छोडूंगा ! तुम्हारी
मौत मेरी भी मौत सिद्ध होगी........|”.......... विवटर ह्यूगो का पत्र प्रेमिका जुलिअट के
नाम
- “........मेरी
‘प्रेम’-द्रष्टि मेरी आत्मा की सबसे
तूफानी वासना को शांत करने की ताकत रखती है| तेरे कोमल मधुर शब्द ज़िन्दगी के
इस कडुए प्याले में अमृत की बूंदों के समान हैं .......|”.........कवी
शैले का पत्र हैरिअत के नाम
- “........चाहे
जो भी स्त्री मेरी जीवन धारा में अपनी जीवन धारा मिलाये,मैं उसे प्रशन्न और
संतुष्ट बनाने में कोई कोर कसर नहीं छोडूंगा,और यदि मैं ऐसा न कर सका तो यह
मेरे लिए सबसे अधिक दुःख और दुर्भाग्य की बात होगी | यदि मैंने तुममे असंतोष
की झलक देखी,तो मेरा सारा सुख धुल में मिल जाएगा.......”............राष्ट्रपति
अब्राहिम लिंकन का पत्र मेरी ओवन्स के नाम
- “......जब
मैं तुम्हारा पति बनूँगा,यदि तुम्हारा मुझे उतना ही प्यार न मिला,जितना की
मैं तुम्हें करता हूँ,,मेरे लिए भयंकर होगा........|”............उपन्यासकार
टॉलस्टॉय का पत्र सोनिया के नाम
- “.......मैं
तुम्हें कितना प्यार करता हूँ? यह प्रकट करना असम्भव है,और मेरा यह विश्वाश
है कि हम दोनों एक-दूसरे के लिए ही बनाये गए हैं......|”........सर
वाल्टर स्कोट का पत्र मारगरेट के नाम
- “......एक
पंक्ति लिख भेजना ओ मेरे प्रियतम दूल्हे......| जब तक तुम तैयार हो
जाओ......|”..रानी विक्टोरिया का पत्र राजकुमार अल्बर्ट के नाम
- “........लेकिन
प्रियतम! पत्रों में लिए-दिए गए,ये चुम्बन किस काम के....? मेरे अपने प्यारे
पति तुम सदा-सदा मुझे प्यार करोगे क्या नहीं करोगे? और मैं भी बफादार पत्नी
बनी रहूंगी....|”..........जैन बिल्स का पत्र कार्लाइल के नाम
- “......प्यार
के फूल तुम्हारे चारों ओर गुँथ जाएँ और शांति की धूप तुम्हारे मन पर अपना रस
बरसाए....|”.........उधोगपति हेनरी फोर्ड का पत्र क्लेरा के नाम
- “.....तुम
बाकई बहुत अच्छी हो,मैं तुम्हें सम्पूर्ण अस्तित्व सहित प्यार करता
हूँ.......|”.........साहित्यकार अड्वेर्ड फिज्गेराल्ड का पत्र एलन के
नाम
- “......मुझे
इतना खाली-खाली कभी भी नहीं लगा....प्यारे नन्हें दिल शांत हो! तुम अपनी
प्रेमिका से जादा समय के लिए जुदा नहीं रहोगे.....|”........कवी
गेटे का पत्र फ्रेदिरिका के नाम
‘प्रेम’ पर भाव और विचार | Thought on
love:
1. “love
workoth no ills”
‘प्रेम’ से कोई हानि
नहीं होती|....शेक्सपीयर
2. “its
love alone can tell of love”
‘प्रेम’ ही ‘प्रेम’ के
विषय में कुछ कह सकता है|...बर्डस्वथ
3. “love
knows no other”
‘प्रेम’ अपने सिवाय
किसी और को नहीं जानता| सायद इसीलिए ‘प्रेम’ को अँधा
कहते हैं|....टॉलस्टॉय
4. पुरुष
के ‘प्रेम’ का
आरम्भ ‘प्रेम’ से होता है,पर अंत नारी पर होता है|
नारी के ‘प्रेम’ का आरम्भ पुरुष से होता है पर अंत ‘प्रेम’ पर
होता है|....unknown
5. पुरुष
के लिए ‘प्रेम’ एक भाव है,नारी के लिए भावना|......unknown
6. प्यार
युद्ध की तरह है,,,जिसे सुरु करना आसान है,,किन्तु समाप्त करना कठिन|.....HL मनकेन
7. “mans
love is of mans life a thing apart,its womans whole existence”
मनुष्य का प्यार उसके जीवन की एक
भिन्न बस्तु है,परन्तु नारी के लिए उसका प्यार उसका सारा जीवन|...वायरन
8. “love
is like the moon,when it doesnt increase it decreases”
‘प्रेम’ चन्द्रमा के
समान है,अगर वह बढेगा नहीं तो घटना सुरु हो जायेगा|....सीगर
9. “love
looks not with the eyes,but with the mind”
‘प्रेम’ आँखों से
नहीं बरन मन से देखता है|....शेक्सपीयर
10. “love
give itself,its not bought”
‘प्रेम’ ख़रीदा नहीं
जाता,वह स्वयं को अर्पित करता है|....लोंगफेलो
11. “love
is blind,and lovers cant see the pretty idiocies that they themselves commit”
‘प्रेम’ अँधा है और
प्रेमी उन सुन्दर मूर्खताओं को जिन्हें वे करतें हैं,नहीं देख सकते|....शेक्सपीयर
12. “the
lunatic,the lover,and the poet,are of imagination all compact”
पागल हो,प्रेमी हो,या कवी,इन
सबकी कल्पना शक्ति बढ़ी तीब्र होती है|....शेक्सपीयर
13. “only
since i loved is life lovely,only since i loved know i that i lived”
जब से मैंने ‘प्रेम’ किया,तभी
से मैंने अनुभव किया की मैं जीवित हूँ|.....कोर्नर
14. “love
is the root of creation,GOD essance”
‘प्रेम’ संसार की
उत्पत्ति की एक जड़ है,और परमात्मा का एक तत्व है|....लोंगफेलो
15. ‘प्रेम’ एक खोज
है,विवाह उसमें विजय पाना,, और तलाक एक अन्बेषण है|..हेलन एलेंट
16. प्यार
एक एहसाह है जो हम जिस भी इन्सान से करते हैं,तो उसका दुःख अपना दुःख लगे,उसका सुख
अपना सुख लगे,उसका गम अपना गम लगे,उसकी हर ख़ुशी अपनी ख़ुशी लगे,,तो समझ लेना चाहिए
की हमे उस इंसान से प्यार हो गया है|
17. प्यार
क्या है? पता नहीं, पर इतना मालूम है कि आत्मा में तड़प हो किसी के लिए,सायद सच्ची
श्रद्धा हो,प्यार हो!.....सेल्फ
18. प्यार
एक धोखा है,इसमें आदमी डूबता जाता है,लेकिन गिरता है तो पता नही चलता,कहाँ हैं हम|
19. प्यार
बस प्यार होता है,किसी को प्यार बहुत कुछ देता है,और किसी से सबकुछ छीन लेता है|
20. अगर
आप कामयाब होना चाहतें हैं तो किसी से सच्चा प्यार करें,क्योकि उसको पाने की चाहत
आपको कामयाब बना सकती है|
21. प्यार
या लव जब किसी से होता है,तो गुदगुदी सी होती है पूरे बदन में,रातों की नींदे उड़
जाती हैं,हर पल दिल-ओ-दिमाग किसी की तरफ होता है,और बाकी दुनियाँ को भूल जाते
हैं,हर पह एक जन्नत का एहसास दिलाता है,जब दो दिल एकसाथ धडकते हैं,दिल चाहता है ये
पल कभी ख़तम न हों|
22. प्यार
एक ऐसा वादा है जिसको निभाते-निभाते पूरी ज़िन्दगी प्यार से कट जाती है|
23. पानी
और प्यार में क्या फर्क होता है?,,,फर्क ये है की इंसान यदि पानी में गिरे तो भीग
जाता है,और प्यार में गिरे तो डूब जाता है|
24. ‘प्रेम’ के
बिना जीवन एक ऐसा वृक्ष के समान है,,जिस पर न कोई फूल है न फल|
25. इंसान
को प्यार होते ही उसका दिमाग काम करना बंद कर देता है,इसलिए सच्चे प्यार करने वाले कभी भी हारते नही,,दिल हमेसा सही
फैसला लेता है|
26. प्यार
कभी सही या गलत नहीं होता,बस कभी कभी गलत इंसान से हो जाता है|
27. ‘प्रेम’ के
दो ही रूप होते हैं ,,,किसी को अपना बना लेना या किसी का हो जाना|
28. प्यार
में सच है,,,प्यार दिखाई नहीं देता,लेकिन जब प्यार दिखाई देता हैतो कुछ ओर दिखाई
नहीं देता|
29. सच्चा
‘प्रेम’ कभी
‘प्रतिप्रेम’
नहीं चाहता|....कबीर
30. प्यार
एक भूत की तरह होता है,जिसके बारे में बातें तो सभी करते है,पर देखा किसी-किसी ने
होता है|..सिकंदर
31. खूब
किया मैंने दुनियाँ से ‘प्रेम’! और मुझसे
दुनियाँ ने ! तभी तो मेरी मुश्कुराहट उसके होंठो पर थी और उसके सभी आंशू मेरी
आँखों में|...खलील ज़िब्रहम
32. ‘प्रेम’
आत्मा की खुराक है|...unknown
Best shayari on love in hindi:
जिंदगी के सारे सपने,
हलचल और उम्मीदें उस एक चेहरे के
आसपास जाकर इकट्ठी हो गयी थीं.
.
. बस उसकी देहगंध और
मसृन त्वचा का नमकीन स्वाद- मांस के
जवान पौधे पर गंधाते बौर का मादक
निमंत्रण!
.
. एकबार मेरी बाँहों में किसी नदी की
तरह सरसराते हुए उसने कहा था- औरत
नदी की तरह होती है अशेष, कहीं
ठहरती नहीं, मगर अपने किनारों में
जीवन को ठहराव देती जाती है.
सारी महान सभ्यताओं का इतिहास
देख लो, किसी न किसी नदी की देन
है. दरअसल नदी जहाँ भी जाती है,
जिंदगी वही चली आती है.
.
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. ये असहाय-सी औरतें दरअसल कितनी
सक्षम होती हैं. मर्दों को आकंठ लेती
हैं, स्वयं में उतरने देती हैं, फिर विधाता
की गढी हुई रचना को अपने सांचे में
ढाल उसे दुबारा पैदा कर देती है-
उसकी कमियों में अपनी पूर्णता का
मिश्रण करके! मर्द उसकी देह की कई ईंचे
नापकर विजय उत्सव मना लेता है, मगर
औरत उसे सोखकर, अणु-अणु जीकर फिर
वापस उगल देती है. समंदर की तरह का
उसका यह व्यवहार, किसी से कुछ न
स्वीकारना, लहरों के हाथों सबकुछ
किनारे पर लौटा जाना... उसकी
गरिमा है या दंभ, स्वयं विधाता को
भी मालूम है क्या...
.
.
जहाँ पहली रात बिस्तर पर गिरे बूँदभर
रक्त के धब्बे को देखकर पुरूष अपना
विजय परचम लहराता फिरता है, वही
स्त्री चुपचाप उसकी खून की रेखा
वंशवृक्ष को सींचने में लगा देती है. युगों
की धमनियों में यह खून अनन्त काल तक
दौडता रहेगा.’नश्वर स्त्री पुरूष को
अमर कर देने में भी सक्षम है ’ अपनी
कजलाई आँखों में कौंध भ
.
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. हवा से थियराते हरे-भरे
खेत-सा उसका शरीर कौतुक के क्षणों
में बाजरे की बालियों की तरह खनक -
खनक उठता था. ऐसे में मैं अपना होश
खो बैठता था. मेरी जानुओं के भार से
दबी वह न जाने कैसी तंद्रिल, मदालस
आवाज में हाँफती हुई कहती थी-
जानते हो अशेष, औरत महज एक योनि
नहीं होती, परंतु मर्र्द शायद आपाद-
मस्तक एक लिंग ही होता है. तभी तो
बेचारा योनि से आगे बढ नहीं पाता,
रस के संधान में रसातल में पडा रहता
है...
.
.
.
.
कितनी अद्भुत थी वह- मैंने उसके करीब
आने की कोशिश की तो वह सहज मुझे
अपने पास आने दिया. कहीं प्रतिरोध
नहीं था, अतः मैं निर्विरोध उसमें
धंसता चला गया. यह बहुत बाद में पता
चला कि दरवाजे खुलते ही हैं बंदी
बनाने के लिए. दाना चुगती चिडिया
अदृश्य जाल को निमंत्रण की खुली
बाँहें समझ लेती है. मुश्किल तो तब
होती है जब वह वापस उडना चाहती
है. अकस्मात उसे पता चलता है कि
उसका आकाश उससे हमेशा के लिए
छीन चुका है. उसके अभागे पंखों के लिए
अब कोई उडान शेष नहीं.
..
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. आज मैं अपनी पलकों के आँचल में
तुम्हारे लिए ढेर-सा आकाश चुन
लायी हूँ. मुझे उसकी आँखों के गुलाबी
कोयो में निमंत्रण के मादक संकेत मिलते,
इच्छाओं की रसमसाती झील
दिखती. वह अधैर्य अपनी लंबी
बरौनिया झपकाती- ठीक से देखो,
यहाँ मैं हूँ, तुम हो, तुम्हारा सपना है.
हमारा वह घर है जिसकी नींव को ईट-
पत्थरों की जरूरत नहीं. मैं उसके गुदाज
सीने में अपना चेहरा धंसा देता- इन
हसीन वादियों में मेरा घर है- नर्म,
मुलायम कबूतरों की-सी हरारत
भरी...और ये तुम्हारी जांघें- मेरे
एकमात्र गंतव्य की ओर जानेवाली
उजली, चिकनी सडके... वह गहरी साँस
लेकर अपना चेहरा फेर लेती- तुम कब मुझ
तक पहुँचोगे अशेष, मुझे तुम्हारा कितना
इंतजार है, बहुत अकेली हूँ...
.
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. वह कहती, हमारे बीच से यह देह
की मिट्टी हटा दो. दीवार बनी
हमेशा खडी रहती है, एक-दूसरे तक पहुँचने
नहीं देती.
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. पागल थी वह. अपने शरीर से परे होकर
सोच और अहसास बनकर जीना
चाहती थी. कहती थी, इस हाड-मांस
के मीना बाजार में बहुत अकेलापन है,
जैसे राम का वनवास... वैदेही के हिस्से
का जंगल उन्होंने अपने राजप्रसाद में
जीया था... ये उनका सबसे बडा
वनवास था. एक राज की बात
बताऊँ ? औरतें मन की अतल गहराई में
किसी ऐसे ही राम को चाहती हैं जो
कृष्ण की तरह महारास का साथी न
होकर उसके जीवन के निसंग वनवासों
का साथी हो, फिर चाहे ये वनवास
उसी के हाथों क्यों न मिला हो...
देह के स्वाद में डूबकर कोई मन के अतर में
भीगना ही नहीं चाहता... मैं समझाने
की कोशिश करता- मगर इसमें गलत
क्या है! देह ही तो प्यार की जमीन है.
वह उदास हो जाती- मगर यही उसकी
हद तो नहीं होनी चाहिए... तुमलोग
इसी जंगल में क्यों भटकते रहते हो!
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. अपने
साथी का दैहिक और मानसिक स्तर
पर बराबर का साथ चाहती है,
जितना लेती है, उतना, बल्कि उससे भी
ज्यादा देना चाहती है! सम+भोग तो
सही अर्थ में वही करती है... सबकुछ
अकेले हडपने के चक्कर में तुम मर्द कितने
अकेले रह गये हो...
.
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. एकबार बिस्तर पर रोम-रोम से रीत
गयी-सी पडी-पडी वह शिकायत कर
बैठी थी- मेरा सबकुछ जस का तस रह
गया है अशेष. तुम मुझे लेते क्यों नहीं ? मैं
तुम पर पूरी तरह खत्म हो जाना चाहती
हूँ. तुम मुझे सुद-मूल में कमा लो, मैं तुमपर
पाई-पाई खर्च हो जाऊंगी... जानते
हो टैगोर क्या कहते हैं- दूंगा उसे जिसे
बिना मूल्य दे सकूंगा- हर औरत बस यही
चाहती है......