बीते पल

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 धरती को चूमता गगन ,ढलता हुआ दिन शंध्या की आघोष में लुप्त होने जा रहा है| क्षैतिज से आ रही सूर्य की धुंधली लालिमा से पार्क में बने तालाब  का पानी जैसे नहा रहा हो| खामोश वृक्ष प्रेम और स्नेहा के इस मिलन को जैसे चुपके- चुपके खामोशी की ओट से देख रहे हो| ये नज़ारे उनके मिलन को और रोमांटिक बना रहे थे| ये हसीं वादियाँ प्रेम को और रोमांचित बना रही थीं वहीँ स्नेहा जैसे खुद से कही बहुत दूर चली गयी हो| एकाएक प्रेम ने स्नेहा को अपने आप में समेट लिया !स्नेहा तो बेजान हो गयी जैसे बो मात्र एक बुत रह गयी हो| स्नेहा, प्रेम के सिने से लगी हुई थी,उसका मासूम चेहरा चेहरे पर बिखरी काकुलो से उसकी आँखें बस शून्य की तरफ अटकी थी,जैसे वो किसी को निहार रही हों| प्रेम भी स्नेहा की कोई प्रतिक्रया न देख उसके इस व्यवहार से सोच में पड़ गया|
                    प्रेम और स्नेहा की मुलाकात एक मशहूर वैबाहिक वेबसाइट पर हुई थी| तब से दोनों में बाते होने लगी,कभी mail  तो कभी sms तो कभी फ़ोन से| उनका प्रेम परवान चढ़ रहा था,हद यह थी की दोनों एक दूसरे को,सुबह-शाम बगैर एक दुसरे को sms किये खाना नही खाते थे | स्नेहा ने प्रेम की फोटो इन्टरनेट पर देखि थी,पर प्रेम ने स्नेहा को नही देखा था| प्रेम को कुछ दिनों के लिए कही बाहर जाना पड़ा, इस बीच दोनों के बीच बातों में बहुत दूरियां हो गयी जिससे उनको एक दुसरे से मिलने की तड़प और बढ़ गयी आखिर ५ -६ महीनों के बाद उन्होंने विक्टोरिया पार्क में मिलने का एक दुसरे से वादा कर लिया|
                  जब से स्नेहा ने मिलने को कहा और मेट्रो स्टेशन पर आने का समय दिया,तब से प्रेम एक पल भी उसकी यादों को खुद से दूर नही कर पाया,एक अजीब सी बेचैनी उसे घेरे हुए थी| आज प्रेम ने बहुत दिन बाद खुद को आईने में इस तरह से देखा था,एक अन्बर्नीय रोनक थी उसके रूप में|चल दिया प्रेम चेहरे और मन में छुपाये अनगिनत उमंगें....| स्टेशन पर खड़े हुए कुछ ही मिनट हुए होंगे की उसकी नजर सीडियों से उतरती एक नवयुवती पर पढ़ी,,उसे देख कर प्रेम को एक बार तो ऐसा लगा जैसे बो उसे बहुत पहले से जानता हो,प्रेम की आँखे उसे बस एक नजर से सदियों तक देखना चाहती थी बो उसके चेहरे से अपनी नजरें नहीं हटा पा रहा था| हल्के धानी रंग की कुर्ती पहने और उसपे एक हल्का सा दुपट्टा डाले,कलाई में सतरंगी इन्द्रधनुसीय रंग लिए कड़ा,श्रंगार के नाम पे कानों में मात्र  छोटी छोटी दो बालियां,सफ़ेद चश्मा लगाए स्नेहा बेहद खूबसूरत लग रही थी| प्रेम के ह्रदय से बस एक ही सदा आ रही थी की इससे कुछ रिश्ता है मेरा,बाबजूद इसके की उस लड़की को पहले कबी देखा तक न था| प्रेम के अंतरमन से एक आवाज आई,प्रेम! तू किसी और का इंतजार कर  रहा है फिर क्यूँ इस लड़की को इतनी अहमियत दे रहा है तू| प्रेम ने एकाएक नजरें न चाहते हुए भी उस युवती पर से हटा ली|
                   प्रेम को लगा स्नेहा सायद अगली ट्रेन से आएगी इए सोच बो चाय पिने के बहाने आगे कैंटीन की तरफ बड़ा की अचानक उसके मोबाइल में एक टोन बजी जो उसने स्नेहा के नाम पर सेट कर रखी थी "तू मेरी रानी मैं रजा तेरा " ,प्रेम न जाने कहा गुम सा हो गया उसने फोन रिसीव नही कर पाया और फोन कट गया,उसे बहुत गुस्सा आ रहा था अपने आप पर उसने स्नेहा  का फ़ोन मिस जो कर दिया था,,अक्सर येही होता ह जब स्नेहा का फ़ोन आता है,पता नहीं उसे क्या हो जाता है|
                  प्रेम ने जैसे ही रीडायल का बटन प्रेस किया और कॉल बेक की तो वह क्या देखता है की वही लड़की जिससे वह अपनी नजरें नहीं हटा पा रहा था कोई और नहीं उसकी स्नेहा  ही है| इधर स्नेहा को प्रेम का वहा पर उपस्थित न होना और फिर इतने इन्तजार के बाद भी प्रेम का न आना,उसका बुरा हाल कर रहा था| उसे प्रेम पर बहुत गुस्सा आ रहा था| और इधर प्रेम स्नेहा को तंग करने का ऐसा मौका मिस नहीं करना चाहता था | वह स्नेहा के पास में जाकर खड़ा हो गया,स्नेहा ने एक बार फिर से प्रेम को फ़ोन लगाया तो मोबाइल ऑफ बता रहा था,अब तो स्नेहा का गुस्सा आसमान छू रहा था,यह देख प्रेम की हशी छूट गयी,स्नेहा को समजते देर न लगी की बगल बाला इंसान उसे परेशान देख उसका मजाक उड़ा रहा है | स्नेहा ने जैसे ही पीछे मुड कर देखा तो उसने प्रेम को पहचान लिया| प्रेम एक फ़िल्मी अंदाज में स्नेहा के सजदे में अपने घुटनों के बल बैठ गया और कान पकड़ते हुए बोला "sorry sneha" |प्रेम के चेहरे पे एक हलकी सी मुस्कान थी| स्नेहा को उसके माफ़ी मांगने का ये अंदाज बहुत पसंद आया,पर ये देख की वहा उपस्थित सभी लोग सिर्फ उनके तरफ ही देख रहे है,थोड़ी सी लज्जा आई ,और पलके झुक गयी|
                    "आप भी ना ! चलो अब उठ भी जाओ ना" स्नेहा ने शरमाते हुए हल्की आवाज में बोला|...."आप भी ना" ये लब्ज सुनते ही प्रेम अपने अतीत में चला गया,कोई था उसकी जिंदगी में कभी जो "आप भी ना" उसके किसी प्रश्न की प्रतिक्रिया में दिया करता था| प्रेम इस गुलशन से निकल कर फिर से उस वीराने में नही जाना चाहता था बो पल एक पल भी याद नही करना चाहता था|
 स्नेहा का हाथ थामे थामे वह खड़ा हो गया,और चल दिए दोनों वहां से एक नये अनजान सफ़र पे,,मन में अजीव उमंगे लिए,,ख़ामोशी !.....दो इंसान जो बातों से कभी थकते नही थे आज खामोश हैं,,बो कहना तो बहुत कुछ चाहते हैं एक दुसरे से पर जुवां दिल का साथ नही दे रही...इसे ख़ामोशी कहें या तूफ़ान जो उनके प्यार से पहले आने वाला है जिसमें दोनों दूर तक बहुत दूर तक उड़ जाना चाहते हैं.....स्नेहा को सांसो को ये धीमी गर्मी खाए जा रही थी उसने चुप्पी तोड़ी....

स्नेहा: आखिर हम आमने-सामने आ ही गये ना!
प्रेम: आमने-सामने नही पास आ गये!
मैंने तो ऐसे ही बोला था आप इतने इमोसनल क्यों हो गये,स्नेहा ने प्रतिक्रिया दी
प्रेम : इमोसनल नहीं हुआ मैं,,आप गलत बोल रही हो
स्नेहा(चुटकी बजाते हुए): ओये!.... मैं गलती नही करती....हां
प्रेम को स्नेहा का ये अंदाज बहुत प्यारा लगा,,और चेहरे पर हलकी सी स्माइल आ गयी, ये देख स्नेहा के चेहरे पर भी स्माइल आ गयी|..हसते कूदते पहुच गये दोनों विक्टोरिया मेमोरियल पार्क,,,

               

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